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🚩 #जयमातारानीकी 🚩 🙏🚩🚩#जयश्रीराम 🚩🚩🙏 🙏🚩 #जयश्रीराधेकृष्णा 🚩🙏🌺🕉 #शुभ_संध्या 🕉🌺🙏@KalpanaChovey 🌺🙏‼️जय श्री राधे कृष्णा जी‼️🚩🙏

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🚩‼️जय श्री राम‼️🚩🙏 बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे इस पावन भूमि के वीर-वीरांगनाओं की पीढ़ियों का सम्मान है। इससे उत्तर प्रदेश के साथ ही पूरे देश की आकांक्षाओं को एक्सप्रेस रफ्तार मिलेगी। https://t.co/TNyATCm6Nt
🚩‼️जय श्री राम‼️🚩🙏 🚩हर हर महादेव🕉 🚩🙏 महान ऋषि-मुनियों की तपोस्थली, सृजन की धरा, विभिन्न संस्कृतियों की संगमस्थली, उत्तर प्रदेश की क्रांति भूमि पर ‘नए भारत’ के ‘शिल्पकार’ आदरणीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी का हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन!


🚩‼️जय श्री राम‼️🚩🙏 माननीय प्रधानमंत्री @narendramodi जी कल उत्तर प्रदेश के जालौन में बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का उद्घाटन करेंगे।



🚩‼️जय श्री राम‼️🚩🙏 🚩🕉हर हर महादेव🕉 🚩🙏👉 2022 का नया भारत आत्मनिर्भर भारत जय हिंद जय भारत !!

🚩‼️जय श्री राम‼️🚩🙏 🚩🕉हर हर महादेव 🕉🙏 Bundelkhand will receive a gift of development from PM @narendramodi on July 16. Prime Minister will inaugurate the #BundelkhandExpressway. A foundation stone was laid for the expressway by PM Modi himself in February 2020.@PMOIndia The state-of-the-art Bundelkhand Expressway passes through 7 districts. The local economy will benefit tremendously due to it. There will be great industrial development in the region and this would bring more opportunities for the local youth.
A foundation stone was laid for the expressway by PM Modi himself in February 2020.
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🚩🐾 #जयहोमातारानीकी 🙏🙏🚩 #जयश्रीराधेकृष्णा 🚩🙏 🙏🚩 #जयश्रीराम 🚩🙏 🐾🌄 #शुभप्रभात 🌄🐾🙏

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चातुर्मास्य माहात्म्य अध्याय–01/10 इस अध्याय में पढ़िये–चातुर्मास्य व्रत का माहात्म्य, संयम-नियम, दया धर्म तथा चौमासे में अन्न आदि दानों की महिमा नारदजी बोले–’देवाधिदेव! इस समय मैं शुभ कारक चातुर्मास्य व्रत को सुनना चाहता हूँ।’ ब्रह्माजीने कहा–’देवर्षे! ये भगवान् विष्णु ही सबको मोक्ष देने वाले तथा संसार सागर से पार उतारने वाले हैं। इनके स्मरण मात्र से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। संसार में मनुष्य-जन्म दुर्लभ है। उसमें भी उत्तम कुल में जन्म पाना और दुर्लभ है। कुलीन होने पर भी दयालु स्वभाव का होना और कठिन है। यह सब होने पर भी कल्याणमय सत्संग प्राप्त होना और भी दुर्लभ है। जहाँ सत्संग नहीं, विष्णु भक्ति नहीं और व्रत नहीं हैं, वहाँ कल्याण की प्राप्ति दुर्लभ हैं। विशेषतः चातुर्मास्य में भगवान् विष्णु का व्रत करने वाला मनुष्य उत्तम माना गया है। सब तीर्थ, दान, पुण्य और देवस्थान चातुर्मास्य आने पर भगवान् विष्णु की शरण लेकर स्थित होते हैं। जो चातुर्मास्य में श्रीहरि को प्रणाम करता है, उसी का जीवन शुभ है। संसार में मनुष्य का जन्म और भगवान् विष्णु की भक्ति दोनों ही दुर्लभ हैं। जो मनुष्य चातुर्मास्य में नदी स्नान करता है, वह सिद्धि को प्राप्त होता है। जो झरना, तड़ाग और बावली में स्नान करता है, उसके सहस्त्रों पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं। पुष्कर, प्रयाग अथवा और किसी महातीर्थ के जल में जो चातुर्मास्य में स्नान करता है, उसके पुण्य की संख्या नहीं है। नर्मदा, भास्कर क्षेत्र, प्राची सरस्वती तथा समुद्र-संगम में एक दिन भी जो चातुर्मास्य में स्नान करता है, उसमें पाप का लेशमात्र भी नहीं रह जाता। जो नर्मदा में एकाग्रचित्त होकर तीन दिन भी चौमासे का स्नान करता है, उसके पाप के सहस्रों टुकड़े हो जाते हैं। जो गोदावरी नदी में सूर्योदय के समय चौमासे में पंद्रह दिन तक स्नान करता है, वह कर्मजनित शरीर का परित्याग करके भगवान् विष्णु के धाम में जाता है। जो मनुष्य तिल मिश्रित एवं आँवला मिश्रित जल से अथवा बिल्वपत्र के जल से चातुर्मास्य में स्नान करता है, उसमें दोष का लेशमात्र भी नहीं रह जाता। देवाधिदेव भगवान् विष्णु के चरणों के अंगुष्ठ से प्रवाहित होने वाली गंगाजी सदा ही पापनाशिनी कही गयी हैं चातुर्मास्य में उनका यह माहात्म्य विशेष रूप से प्रकट होता है। भगवान् विष्णु स्मरण करने पर सहस्रों पाप भस्म कर डालते हैं, इसलिये उनका चरणोदक मस्तक पर चौमासे में धारण किया जाय तो वह कल्याणकारी होता है। चातुर्मास्य में भगवान् नारायण जल में शयन करते हैं, अत: उसमें भगवान् विष्णु के तेज का अंश व्याप्त रहता है। उस समय उसमें किया हुआ स्नान सब तीर्थों से अधिक फल देने वाला होता है। नारद! बिना स्नान के जो पुण्यकार्यमय शुभ कर्म किया जाता है, वह निष्फल होता है, उसे राक्षस ग्रहण कर लेते हैं। स्नान से मनुष्य सत्य को पाता है। स्नान सनातन धर्म है, धर्म से मोक्ष रूप फल पाकर मनुष्य फिर दु:खी नहीं होता। रात को और सन्ध्या काल में बिना ग्रहण के स्नान न करे, गर्म जल से भी स्नान नहीं करना चाहिये। सूर्य के दर्शन से सब कर्मों में शुद्धि कही गयी है। चातुर्मास्य में विशेष रूप से जल की शुद्धि होती है। शरीर असमर्थ हो तो भस्मस्नान से उसकी शुद्धि होती है। मन्त्र स्नान से, भगवान् विष्णुके चरणोदक से अथवा भगवान् नारायण के आगे क्षेत्र, तीर्थ और नदी आदि में जो स्नान करता है, उसका चित्त शुद्ध हो जाता है। चातुर्मास्य में यह महत्त्व और बढ़ जाता है। चातुर्मास्य में भगवान् के शयन करने पर प्रतिदिन स्नान के अन्तर में श्रद्धायुक्त चित्त से पितरों का तर्पण करना चाहिये। इससे महान् फल की प्राप्ति होती है। नदियों के संगम में स्नान के पश्चात् पितरों और देवताओं का तर्पण करके जप, होम आदि कर्म करने से अनन्त फल की प्राप्ति होती है। पहले भगवान् गोविन्द का स्मरण करके पीछे शुभ कर्मो का अनुष्ठान करना चाहिये। ये भगवान् गोविन्द ही देवता, पितर और मनुष्य आदिको तृप्ति देने वाले हैं। चातुर्मास्य सब गुणों से उत्कृष्ट समय है। उसमें धर्मयुक्त श्रद्धा एवं स्मृति से पवित्र समस्त कर्मो का अनुष्ठान करना चाहिये। सत्संग, ब्राह्मण भक्ति, गुरु, देवता और अग्नि का तर्पण, गोदान, वेदपाठ, सत्कर्म, सत्यभाषण, गोभक्ति और दान में प्रीति–ये सब सदा धर्म के साधन हैं। भगवान् विष्णु के शयन करने पर उक्त धर्मो का साधन एवं नियम भी महान् फल देने वाला होता है। दो घड़ी भी भगवान् विष्णु का ध्यान एवं उन निरंजन परमेश्वर के सेवन से सौ जन्मों का पाप भस्म हो जाता है। यदि मनुष्य चौमासे में भक्ति पूर्वक योग के अभ्यास में तत्पर न हुआ, तो नि:सन्देह उसके हाथ से अमृत गिर गया। बुद्धिमान् मनुष्य को सदैव मन को संयम में रखने का प्रयत्न करना चाहिये; क्योंकि मन के भली भाँति वश में होने से ही पूर्णतः ज्ञान की प्राप्ति होती है। यह बात निश्चय पूर्वक कही जा सकती है। अत: क्षमा के द्वारा मन को वश में करना चाहिये। एकमात्र सत्य ही परम धर्म है, एक सत्य ही परम तप है, केवल सत्य ही परम ज्ञान है और सत्य में ही धर्म की प्रतिष्ठा है। अहिंसा धर्म का मूल है, इसलिये उस अहिंसा को मन, वाणी और क्रिया के द्वारा आचरण में लाना चाहिये। पराये धन का अपहरण और चोरी आदि पाप कर्म सदा सब मनुष्यों के लिये वर्जित हैं। चातुर्मास्य में इनसे विशेष रूप से बचना चाहिये। ब्राह्मण तथा देवता की सम्पत्ति का विशेष रूप से त्याग करना चाहिये। न करने योग्य कर्मो का आचरण विद्वान् पुरुषों के लिये सदैव त्याज्य है। नारद! जो सम्पूर्ण कार्यों में निष्काम भाव से प्रवृत्त होता है, जिसमें अहं बुद्धि का अभाव है, जो बुद्धि के नेत्रों से ही देखता है, ऐसा पुरुष ही महाज्ञानी और योगी है। मनुष्यों के शरीर में यह अहंकार विष है। अत: वह सदैव त्याग देने योग्य है। मनुष्य कामना के त्याग द्वारा क्रोध और लोभ को जीते। ऐसे मनुष्य के सहस्त्रों पाप उसके शरीर से निकलकर सहस्रों टुकड़ों में नष्ट हो जाते हैं। शान्ति के द्वारा मोह और मन को जीत कर विचार के द्वारा शान्ति भाव को अपनाना चाहिये। सन्तोष से भी शान्ति का उदय होता है। जो अपनी कोमलता एवं सरलता के द्वारा ईर्ष्या भाव को दबा देता है, यह मुनीश्वर है। चातुर्मास्य में जीवदया विशेष धर्म है। प्राणियों से द्रोह करना कभी भी धर्म नहीं माना गया है। अत: सदा सब मासों में भूतद्रोह का परित्याग करना चाहिये। मनीषी पुरुष इस भूतद्रोह को सहस्रों पापों का मूल बताते हैं। इसलिये मनुष्यों को सर्वथा प्रयत्न करके प्राणियों के प्रति दया करनी चाहिये। सब प्राणियों के हृदय में सदा भगवान् विष्णु विराज रहे हैं। जो उन प्राणियों से द्रोह करने वाला है, उसके द्वारा भगवान् का ही तिरस्कार होता है। जिस धर्म में दया नहीं है, वह दूषित माना गया है दया के बिना न विज्ञान होता है, न धर्म होता है और न ज्ञान ही होता है। अत: सब प्राणियों के प्रति आत्मभाव रखकर सबके ऊपर दया करना सनातन, धर्म है, जो सब पुरुषों के द्वारा सदा सेवन करने योग्य है। सब धर्मो में दान धर्म की विद्वान् लोग सदा प्रशंसा करते हैं। वेद में अन्न को ब्रह्म कहा गया है, अन्न में ही प्राणों की प्रतिष्ठा है। अत: मनुष्य सदा अन्न एवं जल का दान करे। जल देने वाला तृप्ति को और अन्न-दान करने वाला मनुष्य अक्षय सुख को पाता है। अन्न और जल के समान दूसरा कोई दान न हुआ है, न होगा। मणि, रत्न, मूँगा, चाँदी, सोना और वस्त्र तथा अन्य वस्तुओं के दानों में भी अन्नदान ही सबसे बढ़कर है। चातुर्मास्य में अन्न और जल का दान, गोदान, प्रतिदिन वेदपाठ और अग्नि में हवन-ये सब महान् फल देने वाले हैं। यदि भगवान् विष्णु के साथ समागम के लिये वैकुण्ठ धाम में जाने की इच्छा हो, तो सब पापों के नाश के लिये चौमासे में अन्नदान करना चाहिये। अन्नदान करने से सब प्राणी प्रसन्न होते हैं। देवता भी अन्नदाता की स्पृहा रखते हैं। गुरु और ब्राह्मणों को भोजन कराना, घृतदान करना तथा सत्कर्मों में संलग्न रहना- ये सब बातें चातुर्मास्य काल में जिसमें मौजूद हैं, वह साधारण मनुष्य नहीं है। सद्धर्म, सत्कथा, सत्पुरुषों की सेवा, संतों का दर्शन, भगवान् विष्णु का पूजन और दान में अनुराग–ये सब बातें चौमासे में दुर्लभ बतायी गयी हैं। जो मनुष्य चौमासे में पितरों के उद्देश्य से अन्नदान करता है, वह सब पापों से शुद्धचित्त होकर पितरों के लोक में जाता है। उसके अन्नदान से तृप्त हुए देवता लोग उसे मनोवांछित वस्तु प्रदान करते हैं। चींटी भी उसके घर से भोजन लेकर जाती है। अन्नदान सबसे उत्तम है, उसका न रात में निषेध है, न दिन में। चौमासे में वह विशेष रूप से पापों का नाश करने वाला है। शत्रुओं को भी अन्न देना मना नहीं है। चौमासे में दूध, दही एवं मट्टा का दान महान् फल देने वाला होता है। जन्म काल में जिससे यह शरीर पुष्ट हुआ है, उस अन्न एवं दुग्ध का दान उत्तम है। साग देने वाला मनुष्य न कभी नरक में जाता है और न यमलोक का दर्शन करता है। वस्त्र देने वाला प्रलय काल तक चन्द्रलोक में निवास करता है। जो चातुर्मास्य में चन्दन, अगुरु और धूप का दान करता है, वह मनुष्य पुत्र – पौत्रों सहित विष्णु रूप होता है। भगवान् विष्णु के शयन काल में जो मनुष्य वेदवेत्ता ब्राह्मण को फल दान करता है, वह यमलोक को नहीं देखता जो चौमासे में भगवान् विष्णु की प्रीति के लिये विद्यादान, गोदान और भूमिदान करता है, वह अपने पूर्वजों का उद्धार कर देता है। जो जिस देवता के उद्देश्य से चौमासे में गुड़, नमक, तेल, शहद, तिक्त पदार्थ, तिल और अन्न देता है, वह उसी के लोक में जाता है। विशेषतः चातुर्मास्य में मनुष्य को अग्नि में आहुति देनी चाहिये, ब्राह्मण को दान देना चाहिये और गौओं की भली भाँति सेवा पूजा करनी चाहिये। भविष्य में दान देने की प्रतिज्ञा न करके शीघ्र ही दे डालना चाहिये। मनुष्य जो कुछ देने की इच्छा करे, वह अवश्य दे डाले। जिसको देने का निश्चय किया हो उसे ही दे, दूसरे को न दे। दी हुई वस्तु उससे वापस न ले। जो श्रीहरि के शयनकाल में ब्राह्मणों के लिये सब प्रकार का दान देता है, वह पूर्वजों सहित अपने को पापों से मुक्त कर लेता है। ———-:::×:::———- संदर्भ:- श्रीस्कन्द महापुराण 🥀”जय जय श्री राधे”🍁************************************************https://www.mymandir.com/p/Z3EjYb💯 💯*भारत का एकमात्र धार्मिक ऐप्प*। अभी डाउनलोड करें और 50 लाख धा
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